ललोई गांव में 17 साल पुरानी ‘परग’ कुप्रथा को तोड़कर आदिवासी परिवार की बेटी मानसी गौड़ की शादी धूमधाम से कराई गई. गांव वालों ने 3 लाख रुपए चंदा इकट्ठा किया और इस कुप्रथा का अंत किया.

सागर. ‘परग’ एक ऐसी कुप्रथा है, जिसमें गलती एक व्यक्ति करता है, लेकिन सजा पूरे गांव को भुगतनी पड़ती है. इस कुप्रथा के चलते गांव में बेटियों की शादी नहीं हो पाती. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित सागर जिले के माल्थोन ब्लॉक के ललोई गांव में 17 साल पहले एक अपराध हुआ था. इसके बाद गांव के पंचों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि गांव में यह प्रथा लागू होगी. अगर कोई इसे तोड़ेगा तो उसे भयंकर श्राप लगेगा, यानी कोई अपशगुन हो सकता है. इस डर से 17 साल गुजर गए, लेकिन किसी ने भी इस प्रथा को तोड़ने की हिम्मत नहीं की। इसका सबसे ज्यादा असर गरीब वर्ग के लोगों पर पड़ा, क्योंकि उन्हें अपनी बेटियों की शादी गांव के बाहर करनी पड़ती, जिसका खर्च अधिक होता है.

लेकिन विज्ञान के युग में, जहां दुनिया 5G की स्पीड से दौड़ रही है, आज इस तरह की कुप्रथाओं को तोड़कर मिसाल पेश की गई. 17 साल बाद गांव वालों ने मिलकर एक बेटी की शादी की और इस कुप्रथा को तोड़ा. गांव के सभी लोग एकत्रित हुए और चंदा किया, जिसमें 3 लाख रुपए एकत्रित हुए. फिर आदिवासी परिवार की बेटी की धूमधाम से शादी की गई. 

गांव में ‘परग’ लगने की प्रथा के तहत सिर्फ बेटियों की शादी पर रोक लगाई गई थी, जबकि बेटों की शादी पर कोई रोक नहीं थी. कुछ गांवों में तो पूरी तरह से शहनाई बजने पर भी रोक लग जाती है. अपराध करने वाले व्यक्ति को गंगा स्नान करना पड़ता है, गांव वालों को भंडारा करवाना पड़ता है और देवउठनी एकादशी पर तुलसी-शालिग्राम विवाह करवाना पड़ता है. जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक यह कुप्रथा मान्य रहती है.
ललोई गांव के लोगों ने गरीब आदिवासी परिवार की बेटी मानसी गौड़ की शादी सभी ग्रामवासियों की सहमति और आर्थिक सहयोग से कराई. सरपंच बादल सिंह ने बताया कि लगभग 3 लाख रुपए एकत्रित कर यह विवाह समारोह पूरे हर्षोल्लास से संपन्न हुआ. दमोह जिले के नरसिंहगढ़ से आई बारात के स्वागत में गांव के सभी महिला-पुरुषों ने हिस्सा लिया. उन्होंने पूर्व गृहमंत्री और खुरई विधायक भूपेंद्र सिंह को भी विवाह समारोह में आमंत्रित किया था.

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