नई दिल्ली । अगर आपके पास भी LIC के शेयर हैं तो ये जान लीजिए की स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होने के साथ ये मार्केट कैपिटलाइजेशन के लिहाज से देश की 5वीं बड़ी कंपनी बन गई है। LIC से आगे केवल इंफोसिस, HDFC बैंक, TCS और रिलायंस इंडस्ट्रीज है। LIC के शेयरों की BSE पर लिस्टिंग 949 रुपए के इश्यू प्राइस से 82 रुपए नीचे 867 पर हुई है। बाजार बंद होने पर LIC का मार्केट कैप 5.53 लाख करोड़ रुपए रहा।

ऐसे में कई लोगों के मन में ये सवाल होगा कि मार्केट कैप क्या होता है? इससे शेयर का क्या लेना-देना है? मार्केट कैप कैसे बढ़ता और घटता है? मार्केट कैप के लिहाज से अडाणी और अंबानी की टॉप कंपनियों के मुकाबले LIC कहां खड़ी है? शेयर खरीदने में मार्केट कैप की जानकारी कैसे काम आती है? तो चलिए एक-एक कर इन सवालों के जवाब जानते हैं….

मार्केट कैप क्या होता है?
मार्केट कैप किसी भी कंपनी के कुल आउटस्टैंडिंग शेयरों की वैल्यू है। इसका कैलकुलेशन कंपनी के जारी शेयरों की कुल संख्या को स्टॉक की कीमत से गुणा करके किया जाता है। मार्केट कैप का इस्तेमाल कंपनियों के शेयरों को कैटेगराइज करने के लिए किया जाता है ताकि निवेशकों को उनके रिस्क प्रोफाइल के अनुसार उन्हें चुनने में मदद मिले। जैसे लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप कंपनियां।

मार्केट कैप = आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या x शेयर की कीमत

मार्केट कैप कैसे काम आता है?
किसी कंपनी के शेयर में मुनाफा मिलेगा या नहीं इसका अनुमान कई फैक्टर्स से लगाया जाता है। इनमें से एक फैक्टर मार्केट कैप भी होता है। निवेशक मार्केट कैप को देखकर पता लगा सकते हैं कि कंपनी कितनी बड़ी है। कंपनी का मार्केट कैप जितना ज्यादा होता है उसे उतनी ही अच्छी कंपनी माना जाता है। डिमांड और सप्लाई के अनुसार स्टॉक की कीमतें बढ़ती और घटती है। इसलिए मार्केट कैप उस कंपनी की पब्लिक पर्सीवड वैल्यू होती है।

मार्केट कैप कैसे घटता-बढ़ता है?
मार्केट कैप के फॉर्मूले से साफ है कि कंपनी के जारी शेयरों की कुल संख्या को स्टॉक की कीमत से गुणा करके इसे निकाला जाता है। यानी अगर शेयर का भाव बढ़ेगा तो मार्केट कैप भी बढ़ेगा और शेयर का भाव घटेगा तो मार्केट कैप भी घटेगा। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। रिलायंस का शेयर 16 मई को 2427.40 रुपए में बंद हुआ था। आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या से इसका गुणा करने पर इसकी वैल्यू 1642141.01 करोड़ रुपए होती है। अगले दिन 17 मई को शेयर प्राइस 2530.70 रुपए पर पहुंच गया। ऐसे में इसका मार्केट कैप भी बढ़कर 17,12,023.67 करोड़ रुपए हो गया।

टॉप कंपनियों के मुकाबले LIC कहां खड़ी है?
आज की मार्केट क्लोजिंग के हिसाब से LIC का मार्केट वैल्यूएशन 5,53,721.92 करोड़ रुपए रहा है। मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज मार्केट कैप के लिहाज से पहले नंबर पर है। इसका मार्केट कैप 17,12,023.67 करोड़ रहा। दूसरे नंबर पर TCS है जिसका मार्केट कैप 12,63,177.71 करोड़ रहा। तीसरे नंबर पर 7,29,464.56 करोड़ के मार्केट कैप के साथ HDFC बैंक और चौथे नंबर पर इंफोसिस है जिसका मार्केट कैप 6,38,869.36 करोड़ रुपए रहा। टॉप टेन में अडाणी ग्रुप की एक भी कंपनी नहीं है। अडाणी ग्रीन 12वें नंबर पर है जिसका मार्केट कैप 3,57,713.53 करोड़ है।

HDFC लाइफ से 5 गुना ज्यादा मार्केट कैप
इंडियन लाइफ इंश्योरेंस कंपनीज में LIC स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होने वाली चौथी कंपनी है। LIC से पहले ICICI प्रूडेंशियल (29 सितंबर 2016), SBI लाइफ (3 अक्टूबर 2017) और HDFC लाइफ (17 नवंबर 2017) लिस्ट हो चुके हैं। इन कंपनियों का मार्केट कैप मंगलवार को 71,974.23 करोड़, 1,06,349.39 करोड़ और 1,17,218.67 करोड़ रुपए रहा। इस हिसाब से देखे तो LIC का मार्केट कैप दूसरी बड़ी इंश्योरेंस कंपनी HDFC लाइफ से लगभग 5 गुना ज्यादा है।

इश्यू 2.95 गुना सब्सक्राइब हुआ था
LIC के IPO को निवेशकों से अच्छा रिस्पॉन्स मिला था। हालांकि, अट्रैक्टिव वैल्यूएशन के बावजूद ये विदेशी और संस्थागत निवेशकों को लुभाने में विफल रहा। रिटेल और अन्य निवेशकों के लिए 4 मई को खुले इस IPO के सब्सक्रिप्शन का 9 मई को आखिरी दिन था। इश्यू 2.95 गुना सब्सक्राइब हुआ था। 16.2 करोड़ शेयरों के मुकाबले 47.77 करोड़ शेयरों के लिए बोलियां मिलीं थी। LIC ने 2 मई को 949 रुपए के हिसाब से 59.3 मिलियन शेयर के बदले 123 एंकर निवेशकों से 5,630 करोड़ रुपए जुटाए थे।

पॉलिसीधारकों का पोर्शन 6.10 गुना भरा
पॉलिसीधारकों के लिए रिजर्व रखा गया पोर्शन 6.10 गुना, स्टाफ 4.39 गुना और रिटेल निवेशकों का हिस्सा 1.99 गुना सब्सक्राइब हुआ था। QIB के आवंटित कोटे के लिए 2.83 गुना बोलियां आई थी, जबकि NII का हिस्सा 2.91 गुना सब्सक्राइब हुआ थी। 17 मई को शेयर स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हुए। ज्यादातर मार्केट एनालिस्ट ने IPO में पैसा लगाने की सलाह दी थी।

इश्यू ‘आत्मनिर्भर भारत’ की ताकत
डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (DIPAM) सेक्रेटरी तुहिन कांता पांडे ने कहा था कि रूस-यूक्रेन जंग के कारण LIC के IPO में देरी हुई। उन्होंने इस इश्यू को सक्सेसफुल बताया था। फॉरेन इन्वेस्टर्स के उम्मीद के मुताबिक निवेश नहीं करने के एक सवाल के जवाब में पांडे ने कहा था कि LIC IPO आत्मनिर्भर भारत की ताकत को दर्शाता है। इस इश्यू ने दिखाया है कि हमारे कैपिटल मार्केट्स और हमारे निवेशकों में भी क्षमता है… हम केवल विदेशी संस्थागत निवेशकों पर निर्भर नहीं रह सकते।

LIC का इतिहास
जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी’ के टैगलाइन वाली LIC की शुरुआत 66 साल पहले हुई थी। कई लोग अभी भी इंश्योरेंस मतलब LIC ही समझते हैं। 19 जून 1956 को संसद ने लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन एक्ट पारित कर इसके तहत देश में कार्य कर रहीं 245 प्राइवेट कंपनियों का अधिग्रहण कर लिया था। इस तरह 1 सितंबर 1956 को LIC अस्तित्व में आया था।

देश में ऐसे काफी कम परिवार होंगे, जो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से LIC से न जुड़े हो। फिर चाहे वह बीमा धारक हो या एजेंट या फिर इसमें कार्य करने वाला कर्मचारी। आज LIC में 1.2 लाख कर्मचारी काम करते हैं, जबकि करीब 30 करोड़ बीमा पॉलिसियां अस्तित्व में हैं। देशभर में इसके करीब 13 लाख एजेंट हैं। अहम बात यह भी है कि इन्हें मिलने वाले करीब 20 हजार करोड़ रुपए के कमीशन से भी न जाने कितने परिवारों के पेट पल रहे हैं।

LIC की ग्रोथ की बात करें तो 1956 में LIC के देशभर में 5 जोनल ऑफिस, 33 डिवीजनल ऑफिस और 209 ब्रांच ऑफिस थे। आज 8 जोनल ऑफिस, 113 डिवीजनल ऑफिस और 2,048 फुली कंप्यूटराइज्ड ब्रांच ऑफिस हैं। इनके अलावा 1,381 सैटेलाइट ऑफिस भी हैं। 1957 तक LIC का कुल बिजनेस करीब 200 करोड़ था। आज यह 5.60 लाख करोड़ है।

सरकार ने LIC में अपनी हिस्सेदारी क्यों बेची?
एक्सपर्ट्स का इसे लेकर कहना है कि इंडियन इकोनॉमी कोरोना की वजह से मुश्किल दौर में है। सरकार की देनदारी काफी ज्यादा बढ़ गई है। सरकार को पैसे की सख्त जरूरत है और वह अपनी फंडिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा उधार नहीं लेना चाहती। इस समय ऐसा करने का शायद यही सबसे बड़ा कारण है।

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