बिलासपुर/भिलाई- आज हनुमान जन्मोत्सव है। देशभर में पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। प्रदेशभर के हनुमान मंदिरों में सुंदर सजावट की गई है। सुबह से भक्त हनुमान मंदिरों में दर्शन करने पहुंच रहे हैं। कई मंदिरों में सुबह से जन्मोत्सव के कार्यक्रम आयोजित हैं। आज हम आपको छत्तीसगढ़ में विराजमान हनुमान जी की अलौकिक प्रतिमाओं के दर्शन करवाने जा रहे हैं।
इनमें शिवरीनारायण और रतनपुर जैसे धार्मिक और पुरातात्विक नगर शामिल हैं, जहां हनुमान जी की अनोखी प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित हैं। इनमें काले हनुमानजी की मूर्ति, देवी स्वरूपा और गोबर वाले हनुमान जी भी हैं।

- शिवरीनारायण में काले हनुमानजी की मूर्ति
अमूमन मंदिरों, चित्रों और मूर्तियों में भगवान हनुमान को केसरिया रंग में ही देखा गया है। उन पर पक्के सिंदूर को चढ़ाने की ही परंपरा है। लेकिन, जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण में एक स्थान ऐसा भी है, जहां हनुमान जी कि प्रतिमा काली है। इसके पीछे एक रोचक कहानी भी है।
लंका दहन की थकान दूर करने होती है मालिश
यह मूर्ति काले रंग के पत्थर से बनी है। इसे लंका दहन हनुमान भी कहा जाता है। यहां उनकी प्रतिदिन पूजा तिल या चमेली के तेल से की जाती है। उनके शरीर की मालिश की जाती है, ताकि लंका दहन की थकान दूर हो सके।
आग से झुलसे व्यक्ति का जिस तरह उपचार किया जाता है और उसकी तपन दूर की जाती है, ठीक उसी विधि से उनकी पूजा की जाती है।
शिवरीनारायण से जुड़ी कुछ और पौराणिक और धार्मिक कथा
इसे छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर प्राचीन समय में भगवान जगन्नाथ जी की तीनों प्रतिमाएं स्थापित रही थी। बाद में इनको जगन्नाथ पुरी में ले जाया गया था।
इसी आस्था के आधार पर माना जाता है कि आज भी साल में एक दिन भगवान जगन्नाथ यहां आते हैं। इसके साथ ही रामायण के समय से यहां शबरी आश्रम स्थित है।
राजा को कुष्ठ रोग से मिली मुक्ति
यहां हनुमान जी की देवी के रूप में पूजा करने के लिए एक और पौराणिक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार, 10वीं शताब्दी के काल में रतनपुर के एक राजा पृथ्वी देवजू थे, जो हनुमान जी के भक्त थे। राजा को जब कुष्ठ रोग हो गया। तब राजा अपने जीवन से निराश और हताश हो गए थे।
एक रात हनुमान जी राजा के सपने में आए और मंदिर बनवाने के लिए कहा। मंदिर बनने के बाद हनुमान जी फिर से राजा के सपने में आए और अपनी प्रतिमा को रतनपुर में ही स्थित महामाया कुंड से निकालकर मंदिर में स्थापित करने को कहा।
राजा ने वहां से प्रतिमा निकलवाई यह प्रतिमा देवी के रूप में थी। इसे राजा ने भगवान के आदेश के अनुसार मंदिर में स्थापित कराया। तभी से इसकी देवी के रूप में पूजा हो रही है। मंदिर बनवाने के बाद राजा रोग मुक्त हो गए।

राम-लक्ष्मण कंधे पर विराजमान, पैर के नीचे दबा है अहिरावण
हनुमान जी की यह प्रतिमा दक्षिणमुखी है। इनके बाएं कंधे पर श्री राम और दाएं पर लक्ष्मण जी विराजमान हैं। हनुमान जी के पैरों के नीचे दो राक्षस दबे हुए हैं। जिनमें एक को अहिरावण माना जाता है।
मुख्य पुजारी तारकेश्वर महराज बताते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो। देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।। जाय सहाय भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
ये प्रतिमा किसने बनवाई इसका कोई प्रमाण नहीं है। बुजुर्गों से हमने सुना है कि, रामायण काल में भगवान बजरंग बली के एक रूप का जिक्र मिलता है, उसी देवी रूप में ये प्रतिमा मिली और तब से पूजा हो रही है। इसे संकटमोचन हनुमान कहा जाता है।

- भिलाई के गोबर वाले हनुमान जी की महिमा
भिलाई के जामुल थाना के नारधा गांव में स्थित गोबर वाले हनुमान जी की महिमा और कहानी भी अनोखी है। बाबा रुक्खड़ नाथ महाराज के आश्रम में विराजी इस प्रतिमा को पश्चिममुखी हनुमान मंदिर बोला जाता है।
रुक्खड़ नाथ स्वामी के वंशज सुरेंद्र गिरी महाराज इनकी पूजा करते हैं। सुरेंद्र गिरी महाराज ने बताया कि रुक्खड़ स्वामी पंचदशनाम जूना अखाड़ा काशी वाराणसी से अपने शिष्य मौनी गिरी, दत्त गिरी और दौलत गिरी के साथ आए थे।
यहीं बैठकर तपस्या करने लगे। उस समय खैरागढ़ और नागपुर के राजा इनसे मिलने के लिए आते थे। इसलिए इस जगह को गढ़ का रूप दिया गया।