रायपुर- छत्तीसगढ़ में मानसूनी आगाज के साथ ही खेती-किसानी की हलचल भी तेज हो गई है। किसान खेतों के साथ ही सोसायटियों में भी पहुंच रहे हैं लेकिन उन्हें पौधों के लिए जरूरी डीएपी(डाई अमोनियम फॉस्फेट) नहीं मिल रही है। प्रदेश में लगभग तीन लाख टन डीएपी खाद की आवश्यकता है इसके एवज में सरकार के पास सिर्फ 86 हजार टन खाद का स्टॉक ही उपलब्ध है। इसलिए किसानों को डीएपी के बदले एनपीके लेने की सलाह दी जा रही है। वहीं दूसरी ओर सोसायटियों में 12-13 सौ रुपए में मिलने वाली यह खाद खुले बाजार में 17 से 18 सौ रुपए में आसानी से मिल जा रही है।
बताया गया है कि इस खरीफ सीजन में किसानों को 14 लाख 62 हजार टन खाद की जरूरत होगी। इसके विरूद्ध अब तक 8 लाख 48 हजार 604 टन खाद का स्टॉक रखा गया है तथा एक लाख 68 हजार 255 टन किसानों को बाटें जा चुके हैं। डीएपी के अभाव में किसान इसके वैकल्पिक व्यवस्था में लगे हुए हैं। वहीं सोसायटियों में 12 सौ से 14 सौ रुपए में मिलने वाली डीएपी खुले बाजार में यह 1700 से 1800 रुपए तक बेचे जा रहे हैं। महंगे दामों पर खाद लेने किसान मजबूर हैं।
क्यों है डीएपी की संकट
मार्कफेड और सहकारिता क्षेत्र के मुताबिक रूस-यूक्रेन युद्ध से विश्व भर में खाद की सप्लाई प्रभावित हुई है। डीएपी की किल्लत सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश के सभी राज्यों में है। इसके अलावा इजराइल और अन्य संघर्षों के कारण लाल सागर क्षेत्र में समुद्री परिवहन बाधित हुआ है, जिससे कई देशों से खाद का आयात प्रभावित हो रहा है।
अभी इतनी खाद उपलब्ध है
मार्कफेड के डबल लॉक, सहकारी समितियों एवं निजी क्षेत्र को मिलाकर वर्तमान में 3 लाख 90 हजार 840 टन यूरिया, 86,046 टन डीएपी, 1,14,539 टन एनपीके, 67,640 टन पोटाश तथा 1,89,539 टन सुपर फॉस्फेट उपलब्ध है। इनमें से 84,661 टन यूरिया, 27,045 टन डीएपी, 18,809 टन एनपीके, 10,359 टन पोटाश तथा 27,381 टन सुपर फॉस्फेट बांटे गए हैं।
डीएपी का विकल्प क्या है
धान के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 100-120 किलो डीएपी की जरूरत होती है। हालांकि इसका उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाता है। डीएसपी की कमी को एनपीके आैर सिंगल सुपर फास्फेट से दूर किया जाता है। लेकिन किसान डीएपी की गुणवत्ता के सामने इन दोनों खाद को कमतर आंकते हैं।
जिलों में मांग से कम है सप्लाई, कुछ में डिमांड घटाई
- रायपुर: पिछले साल जिले में 14915 टन डीएपी वितरण का टारगेट रखा गया था, लेकिन इस बार डिमांड घटा दी गई है। इस बार सिर्फ 5267 टन डीएपी बांटने का टागरेट रखा गया है। इसके एवज में अब तक सिर्फ 3883 टन डीएपी का ही वितरण किया गया है।
- दुर्ग: पिछले साल जिले में 14,915 टन डीएपी वितरण का लक्ष्य था, जबकि इस बार मांग घटाकर 5,267 टन कर दी गई है। इसके एवज में सिर्फ 3,883 टन का ही वितरण हुआ है।
- बिलासपुर: इस खरीफ सीजन यहां 10 हजार टन डीएपी का टारगेट रखा गया है लेकिन अभी तक सिर्फ दो हजार टन डीएपी की सप्लाई ही की गई है।
- बेमेतरा: बेमेतरा में 63370 टन मांग के मुकाबले 34216 क्विंटल खाद उपलब्ध हो पाया है। जिले की 102 समितियों में से 55 में डीएपी का स्टाक पूरी तरह खत्म हो गया है।
- महासमुंद: जिले में करीब 5 हजार टन डीएपी की जरुरत पड़ती है। लेकिन यहां अभी तक 1679 टन का ही भंडारण किया गया है।
- सरगुजा: जिले में तो डीएपी की मांग 7 हजार टन है। जबकि यहां 1031 टन भंडारण किया गया है।
- रायगढ़: जिले में 8600 टन डीएपी खाद की जरूरत है जबकि अभी तक मात्र 1,722 टन खाद की सप्लाई की गई है।
- सक्ती: जिले में 7,300 टन डीएपी भंडारण का लक्ष्य रखा गया है जबकि इसके विपरीत मात्रा 355 एमटी ही भंडारण किया गया है।
- राजनांदगांव: जिले में 11 हजार टन डीएपी लक्ष्य के विरूद्ध मात्र 975.3 टन ही सप्लाई की गई है।